घर मे दर्पण कहॉ और कैसे वास्तु को प्रभावित करता है|
दर्पण का वास्तु ( पं० आदित्य धर द्विवेदी)
वास्तुशास्त्री पंडित आदित्य धर द्विवेदी के अनुसार न सिर्फ भारतीय वास्तु शास्त्र में , बल्कि चाइनीज वास्तु यानी फेंगशुई में भी दर्पण को लाभकारी माना गया है। लेकिन इसके लाभ के लिए इसका सही इस्तेमाल बहुत जरूरी है , क्योंकि गलत इस्तेमाल से नुकसान होते भी देर नहीं लगती। इसका अर्थ यह भी नहीं कि आप अपने घर या दफ्तर में लगे हर दर्पण को शक की निगाह से देखने लगें या किसी भी शीशे को घर लाने से पहले वास्तुविशेषज्ञ की सलाह लें। लेकिन अगर आप थोड़ी सी सूझबूझ और जानकारी से इसका इस्तेमाल करें तो काफी फायदा उठा सकते हैं।
वास्तुशास्त्री पंडित आदित्य धर द्विवेदी के अनुसार वास्तु शास्त्र के मुताबिक ब्रह्मांड की पॉजीटिव एनर्जी हमेशा पूर्व से पश्चिम की तरफ और उत्तर से दक्षिण की तरफ चलती है। इसलिए दर्पण को हमेशा पूर्व या उत्तर की दीवार पर इस तरह लगाना चाहिए की देखने वाले का चेहरा पूर्व या उत्तर की ओर रहे। क्योंकि दक्षिण या पश्चिम की दीवारों पर लगे दर्पण , उलट दिशाओं से आ रही ऊर्जा को रिफ्लेक्ट कर देते हैं और आप नहीं चाहेंगे कि आप के घर में आ रही पॉजीटिव एनर्जी वापस लौट जाए।
वास्तुशास्त्री पंडित द्विवेदी जी के अनुसार दर्पण जितना बड़ा और हल्का हो , वास्तु के हिसाब से उतना ही अच्छा माना जाता है। हालांकि संख्या को लेकर कोई कठोर नियम नहीं है , और घर में जरूरत के मुताबिक ही आईनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक से ज्यादा शीशों को मिला कर एक बड़े शीशे की तरह इस्तेमाल किया जाए। क्योंकि ऐसा करने पर शरीर खंडित दिखाई देगा , जो वास्तु के हिसाब से सही नहीं है।
दर्पण के इस्तेमाल में सावधानी:-
वास्तुशास्त्री पंडित द्विवेदी जी के अनुसार इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आईना टूटा-फूटा , नुकीला , चटका हुआ , धुंधला या गंदा न हो और उसमें प्रतिबिंब , लहरदार या टेढ़ा-मेढ़ा न दिखाई दे। हमारी शक्ल को ठीक ढंग से न दिखाने वाला दर्पण हमारे प्रभामंडल यानी ‘ ऑरा ‘ को प्रभावित करता है और ऐसे आईने के लंबे समय तक , लगातार इस्तेमाल से नेगेटिव एनर्जी पैदा होती है।
क्या है दर्पण की सही दिशा:-
वास्तुशास्त्री पंडित आदित्य धर द्विवेदी के अनुसार वास्तु शास्त्र के मुताबिक ब्रह्मांड की पॉजीटिव एनर्जी हमेशा पूर्व से पश्चिम की तरफ और उत्तर से दक्षिण की तरफ चलती है। इसलिए दर्पण को हमेशा पूर्व या उत्तर की दीवार पर इस तरह लगाना चाहिए की देखने वाले का चेहरा पूर्व या उत्तर की ओर रहे। क्योंकि दक्षिण या पश्चिम की दीवारों पर लगे दर्पण , उलट दिशाओं से आ रही ऊर्जा को रिफ्लेक्ट कर देते हैं और आप नहीं चाहेंगे कि आप के घर में आ रही पॉजीटिव एनर्जी वापस लौट जाए।
कैसा हो दर्पण का आकार:-
वास्तुशास्त्री पंडित द्विवेदी जी के अनुसार दर्पण जितना बड़ा और हल्का हो , वास्तु के हिसाब से उतना ही अच्छा माना जाता है। हालांकि संख्या को लेकर कोई कठोर नियम नहीं है , और घर में जरूरत के मुताबिक ही आईनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक से ज्यादा शीशों को मिला कर एक बड़े शीशे की तरह इस्तेमाल किया जाए। क्योंकि ऐसा करने पर शरीर खंडित दिखाई देगा , जो वास्तु के हिसाब से सही नहीं है।
दर्पण के इस्तेमाल में सावधानी:-
वास्तुशास्त्री पंडित द्विवेदी जी के अनुसार इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आईना टूटा-फूटा , नुकीला , चटका हुआ , धुंधला या गंदा न हो और उसमें प्रतिबिंब , लहरदार या टेढ़ा-मेढ़ा न दिखाई दे। हमारी शक्ल को ठीक ढंग से न दिखाने वाला दर्पण हमारे प्रभामंडल यानी ‘ ऑरा ‘ को प्रभावित करता है और ऐसे आईने के लंबे समय तक , लगातार इस्तेमाल से नेगेटिव एनर्जी पैदा होती है।

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